Shershah

 शेरशाह : शेरो का सरताज


जुनूं जस्बा और जिगर, 

तीनो को हुआ जब फ़कर,

तो हिंदुस्तान की मिट्टी से जन्मा था ये नग्मा,

एक ऐसा जवन जिसकी मौत के बाद भी बनी एक अमर कथा !


कौन जानता था वह क्या कर बैठेंगा?

देश प्रेम मे वो अपने आप को लहु की चादर मे जा समेटेगा 

कहानियाँ तो बहुत सुनी होगी आपने पर  गाथा उसके निराली थी 

भारत उसकी जन्म भूमि थी और भारत से ही मिली उसे अमरता की लाली थी


ना थी उसे खुद की परवाह 

ना था उसमें देश के सिवा किसी और के लिए जीने का जज़्बा

बाकि सब तो उसमें आधा आधा था 

क्यूंकि देश के लिए जूनून उसमें शेरोन से भी ज्यादा था 


शेरशाह था वा

शेरो मैं भी सरताज 

एक ऐसा जवन था वो

जिस पर मौत ने भी किया होगा नाज़


जन्म से फौजी था वो

मौत का खौफ नही था उसे 

ऐश और शोहरत की जिंदगी से अजनबी था वो

इसका अफ़सोस भी नहीं था उसे 


कौन कहता है हर इंसान मतलबी है ? 

ज़रा कोई उस जवान को तो देखो  जो मतलब शब्द से ही अजनबी है

लापता, गिरता, पड़ता अपने परिवार से कोसो दूर निकल आया है वो 

अपने देश के गर्व को दीपक के उजाले से सजाया है उसने तो 


बंदूक की गिरोह में

गोलियों के सैलाब के भीतर

चंदन का उपतन लगाकर

देखो बैठा है अपने लहू की लहरे सीकर!

ये जबाज़ 


कल भी घायल था वो 

आज भी है घायल

घाव उसके भरे कहाँ है? 

पर इन घावों की जस्बातो से बड़ी जडे कहाँ है? 


वो हर मोड़ पर लड़ेगा

वो न रुकेगा न थमेगा 

वो चलेगा और आगे बढ़ेगा 

क्यूंकि वो है शेरशाह -शेरो का  सिकंदर, देशप्रेम का समंदर!


यही है उसका धर्म,

यही है उसकी भक्ति,

यही है उसका जूनून

और यही है उसकी ज़िन्दगी।


तो उसे याद  करके रोना मत,

मत होना उदास,

क्यूंकि जान  लो वो उस पावन लोक का था,जिस लोक मै आज वो वापस लौट गया है|

देशवाशियों को देशभक्ति करने का सही ढंग सिखाने ही आया था वो धरती पर,

और देखो हम उससे सीखने की बजाए हो रहे है हताश!


राष्ट्रीय त्योहारो पर ही नहीं,

हर एक दिन, अब हम होंगे शुक्रगुज़ार|

उन जवानों का, जो दे देते है मातृभूमि पर बलिदान,

यही है इस कविता का सार|


भारतमाता के लिये अब जब भी  प्राणत्याग होगा,

हम करेंगे उन सब जवानों को नमन,

जिन्होंने इस देश को बनाया है,

और दरिंदो को मौत के घाट सुलाया है या अमरता का अमृत पीकर, देशवासियो की सुरक्षा का ज़िम्मा उठाया है|

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