कटाक्ष -साहित्य और सिनेमा

कटाक्ष


साहित्य और सिनेमा 
ये साहित्य मे जो बात है वो अक्सर सिनेमा के द्वारा क्यों कही जाती है ? जीवन मधुर गति से आगे बढ़|ता रहता है कभी कभार जीवन अपनी मधुरता को बगल मे रखकर , मायूसी से भी आगे बढ़|ता है। अंतत, क्या ही कहा जा सकता है, पर साहित्य और सिनेमा दोनों का जीवन पर प्रभाव कभी कम नहीं होता, वो दोनों ही लगभग एक सी गति से जीवन मे समूचे तौर पर योगदान देते रहते है। साहित्य एक शालीन भांति का पुस्तके पर पन्नो को खाली समय मे क|ला किया गया एक समय पर उपन्यास कहलाने वाला मनुष्य की मायूसी को कभी कम करदेने वाला और कभी भड़ा देने वाला खिलौना मालूम होता है तो सिनेमा मनुष्य के सूने और वही पुराने उबाऊ जीवन मे मनोरंजन भर देने वाली महिमा है , जो कभी कभार या कभी ज़्य|दा बार बिना सर पैर की हो जाती है ।
साहित्य सिनेमा से अलग है पर है नहीं, सिनेमा साहित्य से ज़्य|दा मनोरंजक है , पर वास्तव मे है नहीं । लेखक एक उबाउ प्राणी है और अभिनेता एक रचनात्मक प्रेरक hai पर वास्तव मे है नहीं । साहित्य निरस मस्तिष्क की प्रणाली, मे समिल्लित होने वाला एक वो ख्याल है जो लेखक को वो अरुचिकर ख्याल पन्नों पर उत|रने पर मजबूर करदेता है ताकि उसका मस्तिक्ष कुछ हल्का हो और साहित्य पढने वाले पाठक एक मंद मस्तिक्ष के उस गतिहीन ख्याल को पढ़कर अपने लगभग खाली दिमाग मे कुछ और उबाउ डालता है क्योंकि वैसे भी उनका दिमाग खाली है और ताकि उसमे कम दर्द हो , क्योंकि जब पेट खाली होने पर दर्द होता है और अधिकतर भरे रहने पर भी , तभी मस्तिक्ष का भी वही हाल होता है, जिसके कारण लेखक उस ख्याल को बाहर निकाल फेंकता है और पाठक उसे अंदर ठूंस लेता है |

मुझे न तो साहित्य मे कोई खास दिलचस्पी है और न ही सिनेमा मे, क्योंकि मुझे लगता दोनों जीवन की सुन्दरता से ज़्यदा अभद्रता प्रकट करते है, या शायद मैंने दोनों के ही दायरे मे ऐसे विकल्पों का चुनाव किया है जो मेरी मेरे जीवन के प्रति आसक्ति ,आशंका, अनिष्टता बढ़ा देते है । वैसे साहित्यकार की बात करे तो मेरे हिसाब से वो कुछ बेचैन से प्राणी होते है जो अपना पूरा जीवन चैन से बैठने का अभिनय रचा रहे होते है और पूरी दुनिया को उनके साहित्य की तारीफ कर डालने के लिए कुछ भी करवा सकते है। वो लगभग हर सभ,भाट चित, और सम्मेलन मे एक ही बात को सबसे विशिष्ट और प्रमुख बन|ना चाहते है और वो है उनके साहित्य को ,पर सच तो ये होता है उनका साहित्य मानवीय रूप से सीधा साधा और बेरंग होता है। एक नीरस दिमाग की उबाउ बात मे भला क्या ही रंग होग, एक ऐसा दिमाग जिमसे न उमंग है और न ही आभास , है तो बस आभाव , वो मात्र मानव को पीड़ा और प्रशनो का आलावा क्या ही देने मे सक्षम होग, एक न्य| दृष्टिकोड तो हरगिज़ नहीं ।

इसके मुकाबले मुझे सिनेमा देखना ज़्य|दा पसंद आता है क्योंकि वहा कहानिकर बिना सर पर की कहानी बिना सर पैर के लिखता है और परदे पर दिख|ता है, जबकि साहित्य मे साहित्यकार बिना सर पैर की कहानी , सर पैर के साथ दिखाता है। पर सारे साहित्यकार ऐसे नहीं होता,कुछ बिना सर पैर की कहानी, बिना सर पैर के दिख|ने मे भी सक्षम हो जाते है, और उनका साहित्य पढन| मुझे पसंद भी आता है। पर खेद इस बात का है , की हम मे से कितने उन साहित्यकार को अलग चाट कर उन्हें गौरवांतित करना चाहते है। कोई भी नहीं? अकसर सरकार उन्ही साहित्यकारो को भारत रत्न देती है जो भारत के रत्ने मे छेद ढूंढ कर उसे सर पैर के साथ दर्श|ते है, और कायदे की बात को चादर के नीचे दबाते है।  
फिर भी मेरी नाराज़गी सरकार से नहीं उन् साहित्यकार से है जो साहित्य को सच की चादर से नहीं ढकते और उसे जैसा है उसी तरीके से दिखाते है। उन्होंने क्यों साहित्य की ये कला नहीं सीखी या वे क्यों उस कोर्स मे भर्ती नहीं हुए जिसमे दूसरे प्रशसनीय साहित्यकार हुए , क्या पता हो सकता है, उनकी आर्थिक स्थिति ठीक न रही हो ? खैर कला और कहानियां कहना साहित्य और सिनेमा ki आखिरी प्राथमिकता रही है जो खिसकते खिसकते कभी कभार ग़ायब भी होती नज़र आती है। इश्क़ , मोहब्बत , प्यार के ऊपर न तो बात होती है और न ही जीवन दिखता है , जबकि और ह|लाकि , और शायद उससे भी ज़्य|दा इश्क़ करने वालो की पहली बीमारी इश्क़ ढूँढ़ना रह्ती होगी, पता नहीं ये क्यों नहीं दर्षाया जात, क्या पता ज़्य|दातर साहित्यकार किस्मत वाले रहे होंगे , या वे जलन मे अपने उस मित्र की कहानी का बखान कर रहे होंगे, जिस हमेशा आसानी से इश्क़ के लिए महबूबा मिल जाती है और इश्क़ के फलसफे को हमेशा आदमी के दृष्टि कोड से ही क्यों दिखाया जाता है, हो सकता है साहित्यकारो को आदमी की महरूमियों से ज़्य|दा लगाव हो , क्योंकि औरत की क्या ही महरूमी होती होगी ? उनका जीवन तो केक वाक होता होगा , जैसे की भारत को आज़ादी दिलाना और यूक्रेन और रूस के युद्ध को रोकना। हां अभी रुका नहीं है पर भविष्य मे जब थम जाएगा , वो तब एक केक वाक कहलाएगा , जैसे दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रों  क| हर परचे मे सौ [१००] अंक लाना और शर्मा जी की लड़की का सिविल सेवा की परीक्षा पहले एटेम्पट मे क्लियर करजाना ।
 लीज़ा शर्मा

Comments

  1. Brilliant
    अद्भुत व अतिउत्तम

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